The Author Atul Kumar Sharma ” Kumar ” फॉलो Current Read मर्डर (A Murder Mystery) - 1 By Atul Kumar Sharma ” Kumar ” हिंदी क्राइम कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books सनातन - 2 (2)घर उसका एक 1 बीएचके फ्लैट था। उसमें एक हॉल और एक ही बेडरू... गोमती, तुम बहती रहना - 7 जिन दिनों मैं लखनऊ आया यहाँ की प्राण गोमती माँ लगभग... मंजिले - भाग 3 (हलात ) ... राजा और दो पुत्रियाँ 1. बाल कहानी - अनोखा सिक्काएक राजा के दो पुत्रियाँ थीं । दोन... डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 76 अब आगे,राजवीर ने अपनी बात कही ही थी कि अब राजवीर के पी ए दीप... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Atul Kumar Sharma ” Kumar ” द्वारा हिंदी क्राइम कहानी कुल प्रकरण : 4 शेयर करे मर्डर (A Murder Mystery) - 1 (9) 4.6k 10.1k 3 मर्डर ( भाग - 1 )( A Murder Mystery ) सुनसान अंधेरी रात में एक कार तेज़ी से भागी जा रही थी। इतनी बेहताशा रफ्तार जैसे गाड़ी चलाने वाला किसी से डरकर या फिर कोई क्राइम करके घबराता हुआ दिशाहीन भागा जा रहा हो। गाड़ी के अंदर 17-18 साल का लड़का बुरी तरह घबराते हुए पसीने पसीने हुआ बार बार साइड मिरर से पीछे देख रहा था। मानो कोई उसका पीछा कर रहा हो।अचानक वो कार पर अपना नियंत्रण खो देता है।घबराहट में स्टीयरिंग तेज़ी से घुमाते हुए कभी रोड के इधर कभी रोड के उधर , अंत मे गाड़ी पूरी तरह अनियंत्रित होकर सड़क किनारे एक पेड़ से तेज़ी से जा टकराती है। ब्रेक लगने की तेज आवाज के साथ तीव्र झटके से लड़के का सर स्टेयरिंग से टकराता है। वो वहीं उसी हालत में अचेत हो जाता है।उसका सर स्टेयटिंग पर होने के कारण लगातार गाड़ी का हॉर्न उस सुनसान रास्ते की खामोशी को भेदने लगता है। इंडिकेटर बार बार बन्द चालू जैसी अवस्था मे आ जाते हैं।रात्रि के समय आवागमन से रिक्त उस जंगल के सुनसान रास्ते पर उसे उस वक़्त देखने वाला भी कोई नही था। ( अगले दिन सुबह पुलिस थाने में ) थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर विजय श्रीवास्तव और हवलदार नानक राम साठे चाय की चुस्कियों के साथ अखबार में एक रियलिटी शो का बड़ा सा विज्ञापन पढ़ते हुए उसी बारे में एक दूसरे से अपनी राय साझा करते है। "" यार साठे मुझे समझ नही आता, ये आज़कल माता पिता अपने बच्चों को बचपन मे ही पैसा कमाने की मशीन बनाने में क्यो तुले हैं। और ये टी वी चेनल्स बस इनको पैसे और अपनी टी आर पी से मतलब है। तीन जजेस को बैठा देंगे कंटेस्टेंट को परखने के लिए, भले उन तीन लोगो ने कभी खुद जिंदगी में अपने टेलेंट से कुछ हासिल ना किआ हो, पर प्रतिक्रिया और निर्णय तो ऐसे सुनाते हैं मानो पता नही कितना टेलेंट कूट कूट के भरा हो उनमें। जो बच्चे सफल हो जाते हैं वो घर का ATM बन जाते हैं। फिर उनके माता पिता को उनकी शिक्षा से कोई सरोकार नही होता। और बेचारे जो असफल रहते हैं उनमें बचपन से ही हीन भावना घर कर लेती है। माता पिता के उनको लेकर दूसरे बच्चों से तुलनात्मक अध्धयन का शिकार होते रहते हैं। फिर वो सारी उम्र उस दंश को झेलते हुए सबके ताने सुनते ही बड़े होते हैं, ना पढ़ाई में आगे बढ़ पाते हैं ना ही किसी और क्षेत्र में।और ये टी वी के फुँत्रु लोग तो पैसा बटोरकर सुर्खियों में आकर फिर चंपत हो जाते हैं। मुझे तो लगता है कि ऐसे माँ बाप बच्चों के पैदा होने से पहले ही भगवान से दुआ करने लगते होंगे कि उनके बच्चे में कोई ना कोई ऐसा टेलेंट भर देना जिससे हम भी उसे किसी रियलिटी शो में भेजकर तालियां और सुर्खियां बटोरें। मुझे टेलेंट से कोई शिकायत नही है। यदि टेलेंट है तो उसे उड़ने के लिए आसमान जरूर मिलना चाहिए, पर उसके दिमागी बौद्धिक हास की कीमत पर तो बिल्कुल नही। टेलेंट को मात्र पैसा कमाने का जरिया समझने वाले माँ बाप वही होते हैं जो स्वयम अपने सपनो को ऊंची उड़ान नही दे पाते। वो अपनी इसी कमी को फिर अपने बच्चों से पूरा कराना चाहते हैं। जिसके लिए वो उन मासूम बच्चों से उनका बचपन तक छिनने से बाज़ नही आते। ""..इंस्पेक्टर विजय नाक भौं सिकोड़ते हुए साठे की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगते हैं। "" अब क्या बताएं सर, हर जगह यही भेड़ चाल है। सबको पैसे से मतलब हो गया है। माँ बाप को जब सन्तान छुटपन से ही पैसा कमाकर देने लगे तो उनके तर्क तो यही रहते हैं कि पढ़ाई लिखाई भी इसलिए ही होती है कि बड़े होकर कोई बिज़नेस करके या अच्छी मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब कर मोटी कमाई करने में सक्षम हो जाये । और जब यही पैसे वो बचपन मे किसी मंच पर नाच कूद कर कमाता है तो बुरा क्या है।मतलब तो दोनो का पैसा कमाने से ही है। बच्चे के सम्पूर्ण बौद्धिक विकास पर कोई ध्यान केंद्रित नही करता , उसके सामाजिक और व्यवहारिक विकास पर कभी ध्यान दिया ही नही जाता है। ऐसे बच्चे भले अपने विषय मे ब्रिलियंट हों पर शिरू से अकेले और स्वयम में ही सिमटे हुए होते हैं। उन्हें समाज से कोई मतलब नही होता। "" साठे आखरी चुस्की ले खाली चाय का गिलास टेबिल पर रखते हुए अपने होठो पर लगी चाय की मिठास को जुबान फेरकर अंदर आत्मसात करते हुए बोले। साठे की बात सुनकर इंस्पेक्टर विजय भी एक ठंडी सांस छोड़कर कुर्सी से उठते हुए खिड़की के पास खड़े होकर बाहर के प्रभात सौंदर्य को निहारने लग जाते हैं। तभी टेबिल पर रखे फोन की घण्टी घनघना उठती है। साठे रिसीवर उठाते हैं , सामने से किसी आदमी की घबराई हुई आवाज़ आती है। "" हेलो , सर में रतन, पुरुलिया गांव से बोल रहा हूँ। यहाँ पास ही एक जंगल के रास्ते मे एक कार का बुरी तरह एक्सीडेंट हो गया है। गाड़ी में कोई नही है। पर खून पड़ा हुआ है अंदर सीट पर। और एक गन भी रखी है बाजू वाली सीट पर। आप जल्दी आ जाइये सर।"" "" ठीक है आप वहीं रुकिए, और प्लीज़ किसी भी चीज़ को छूने की कोशिश मत कीजियेगा। हम जल्दी से जल्दी आते हैं।"" कहते हुए साठे फोन का रिसीवर नीचे रख देते हैं। साठे की बात सुनकर इंस्पेक्टर विजय पीछे मुड़कर उसकी तरफ गम्भीर मुद्रा में देखते हुए पूछते हैं। "" तुम्हारी फोन पर बात और चेहरे को देखकर लग रहा है कि हमारे आज के दिन की शिरूवात हो चुकी है। क्या हुआ?????""" "" आप ठीक समझे सर, पुरुलिया गांव से फोन था। वहां पास के जंगल वाली रोड पर एक कार का एक्सीडेंट हो गया है। गाड़ी में कोई नही मिला पर सीट पर खून और एक गन पड़ी हुई है। कोई रतन नाम के आदमी का फोन था।"" साठे अपनी टोपी ठीक करते हुए बोले। "" चलो फिर देर किस बात की। अपने कर्तव्य को पूरा करते हैं चलकर। "" इंस्पेक्टर विजय भी टेबिल पर रखी अपनी टोपी पहनते हुए चलने के तैयार हो जाते हैं। थोडी ही देर में पुलिस की जीप घटनास्थल पर पहुंच जाती है। लोगो का जमावड़ा देख साठे उन्हें कार से दूर हटने का इशारा करते हैं। इंपेक्टर विजय खिड़की से अंदर झाँककर देखते हैं। खिड़की के कांच खुला हुआ था। और सीट और स्टेयरिंग पर खून लगा था। पास ही माउज़र गन पड़ी थी। वो अपने हाथों में ग्लब्स पहनकर गेट खोलकर आधा शरीर गाड़ी में करते हुए अंदर से गन उठाकर पालीथिन में डाल लेते हैं। और कार के अंदर बारीकी से छान बीन करते हैं। बाहर आकर वो आसपास के लोगो से पूछते हैं। "" किसी ने गाड़ी के चालक को देखा क्या???...और आप मे से रतन कौन हैं??? जिसने हमे फोन कर इत्तला दी थी।""" भीड़ में से एक आदमी निकलकर सामने आता है। "" सर मे हूँ रतन, मेने ही आपको सूचना दी थी इस एक्सीडेंट की। में जब सुबह सुबह घूमते हुए यहां से निकल रहा था तो मेरी नज़र इस कार पर पड़ी। बुरी तरह टकराई है पेड़ से सर। मेने जब अंदर झांक के देखा तो कोई नही दिखा , पर खून और रिवाल्वर पड़े हुए थे सीट पर। में घबरा गया और आपको फोन किया। धीरे धीरे ये सभी लोग भी आ गए यहाँ। पर हममें से किसी ने भी कोई चीज़ छू नही सर। ""..वो रतन नाम का आदमी इंस्पेक्टर विजय को देखते हुए बोला। "" हम्ममम्म, आप अपना बयान उस हवलदार को नोट करा दीजिए। और साठे तुम लोगो से पूछताछ करो किसी ने कुछ और देखा क्या???...आसपास अच्छे से चेक करो, शायद वो गाड़ी वाला यही आसपास ही हो। गाड़ी नम्बर नोट कर पता करो कि ये गाड़ी किसके नाम है। गाड़ी चालक घायल हालत में ज्यादा दूर नही गया होगा। बाद में कुछ हवलदार भेजकर गांव में भी पूछताछ करना । रात में टकराई होगी गाड़ी क्योंकि खून जम गया है। गाड़ी को भी लैब भिजवा दो , अच्छे से इसकी चेकिंग होगी। खून के सेम्पल लो और उसे भी लैब भेजो। ""..इंस्पेक्टर विजय साठे को निर्देश देकर आसपास गहनता से कुछ तलाशने लगते हैं। सड़क पर कुछ दूरी तक तो खून के छीटें दिखाई देते हैं, पर एक जगह जाकर रुक जाते हैं। उससे आगे सड़क पर कोई खून नज़र नही आता।वो साठे को लेकर वहीं से अंदर जंगल मे प्रविष्ट होते हैं। "" लगता है यहाँ से वो घायल गाड़ी वाला अंदर को ही गया है। देखो आसपास बारीकी से साठे, जरूर कुछ ना कुछ मिलेगा। "" › अगला प्रकरण मर्डर (A Murder Mystery) - 2 Download Our App